,प्रात: काल जल्दी उठ हाथ-पांव धोकर पलंग के पास बैठ जाइये, विचार करें कि मैं भगवान् का एक पार्षद हूँ, एक भक्त हूँ, ऐसा सोचकर परमात्मा का चिन्तन करें, परमात्मा के गुणों का नित्य चिन्तन करे, चिन्तन कैसे करें? परमात्मा के चरणों में ब्रज अंकुश ध्वजा का चिह्न है, ये परमात्मा के चरण हैं, चरणों के चिन्तन की बात शास्त्रों में क्यों कहीं? क्योंकि हमारा जो चित है ना सज्जनों, इसे चित क्यों कहते है? ।#वनिता #कासनियां #पंजाब ❤️🙏🙏❤️क्योंकि जन्म-जन्माँतरों की वासना की गठरी हमारे चित में चिपकी हुई है, कर्मों की गठरी चित में चिपकी हुई है, जब श्रीकृष्ण के चरणों का चिन्तन करेंगे तो कृष्ण पहले अपने चरणों को हमारे चित में स्थापित करेंगे, उनके चरणों की ध्वजा, अंकुश, ब्रज आदि के द्वारा हमारे पाप की गठरी कट-कटकर हट जायेगी और हमारा चित निर्मल हो जायेगा, जब परमात्मा को हम ह्रदय रूपी घर में बिठाना चाहते हैं और उसमें काम, क्रोध, मत्स्य, वासना जैसी गंदगी भरी होगी तो क्या परमात्मा कभी आयेंगे? बिल्कुल नहीं आयेंगे, इसलिये पहले उनके चरणों का चिन्तन करें और चिन्तन के माध्यम से ह्रदय को शुद्ध करें, तब उस ह्रदय में मेरे गोविन्द का प्राकट्य हो सकता है, पहले चरणों का चिन्तन करें, घुटनों का चिन्तन करें, भगवान् के कटि प्रदेश का चिन्तन करें, प्रभु के उदर का चिन्तन करें, नाभि का चिन्तन करें, कण्ठ का चिन्तन करें और धीरे-धीरे मेरे गोविन्द के मुखार विन्द का चिन्तन करें।हासं हरेरवनताखिललोकतीव्र शोकाश्रुसागर विशोषणमत्युदारम्।सम्मोहनाय रचितं निजमाययास्य भ्रूमण्डलं मुनिकृते मकरध्वजस्य।।हंसी से परिपूर्ण प्रभु के मुखार विन्द का चिन्तन करें, क्योंकि शोकरूपी सागर में डूबा हुआ जो मनुष्य है, उसे शोक सागर से निकालकर आनन्द के महासागर में पहुंचाने की ताकत केवल परमात्मा की हंसी में हैं, हंसते हुए भगवान् के चिन्तन की बात क्यों कहीं? दोस्तो! श्रीकृष्ण के चरित्र में जितने संकट आये, जितने भी परमात्मा के चरित्र है, उनमें श्रीकृष्ण के चरित्र में जितना संकट आया, उतना संकट किसी भगवान् के जीवन में कभी नहीं आया।आप भगवान् श्रीकृष्ण के चरित्र पर एक नजर डालकर देखे- इनका जन्म कहां हुआ? जहाँ डाकुओं को बंद किया जाता है, जेलखाने में तो कन्हैया पैदा हुये जेलखाने में, जन्म लेते ही गोकुल भागना पड़ा, वहाँ केवल सात दिन के थे तो पूतना मारने आ गयी, छ: महीने के थे तब शंकटासुर राक्षस मारने आ गया, एक वर्ष के थे तो तृणावर्त मारने आया, यमुना में कूद कर कालियादमन किया, उसके बाद गिरिराज को उठाया, अघासुर, बकासुर, व्योमासुर, धेनुकासुर, केशी आदि कई राक्षसों को मारा।ग्यारह वर्ष छप्पन दिन के कृष्ण ने सैंकड़ों राक्षसों से युद्ध किया, कंस का मर्दनकर उद्धार किया, मथुरा में भी शांति नहीं मिली, जरासंध ने मथुरा को घेर लिया तो द्वारिका नामक नगरी बसा कर द्वारिका चले गये, द्वारिका में शान्ति से बैठे थे कि पांडव बोले हम संकट में हैं हमारी रक्षा करो, कौरव-पांडवों में छिड़े युद्ध में कन्हैया ने पांडवों को विजय श्री प्रदान कराई, अब थोड़ा शान्ति से बैठे थे, चलो सुख से जीवन व्यतीत होगा तो घर में ही झगड़ा शुरू हो गया।यदुवंशी एक-दूसरे पर वार करने लगे, घर में भी शान्ति नहीं मिली, कृष्ण की आँखों के सामने निन्यानवे लाख से भी ज्यादा संख्या वाले यदुवंशी ऐसे लड-लडकर, कट-कटकर मर गये, एक भी दिन श्री कृष्ण का सुख और शांति से व्यतीत नहीं हुआ, संकट पर आए संकटों का निवारण करने में ही सम्पूर्ण जीवन बीत गया, इतने संकट आने पर भी कभी आपने श्रीकृष्ण को अपने सिर पर हाथ धर कर कभी चिन्ता करते नहीं सुना।भगवान् कभी चिन्ता में डूबे हो ऐसा शास्त्रों में कहीं पर नहीं लिखा, मुस्कुराते ही रहते थे हमेशा, इसका मतलब क्या है? श्री गोविन्द कहना चाहते है कि हमेशा मुस्कुराते रहे, सदैव प्रसन्न रहना ही मेरी सर्वोपरि भक्ति है, आपने सुना होगा उल्लू को दिन में दिखायी नहीं देता और जो कौआ होता है, उसे रात में दिखायी नहीं देता, उल्लू चाहता है कि हमेशा रात बनी रहे तो अच्छा, कौआ चाहता है कि दिन बना रहे तो अच्छा है, लेकिन उल्लू और कौए के चाहने से दिन-रात कभी बदलेगा? ये कभी हो सकता है क्या? रात्रि के बाद दिन और दिन के बाद रात्रि तो आती ही रहेगी, ये क्रम है संसार का, दु:ख और सुख आते-जाते ही रहेंगे, अत: दोनो परिस्थतियों में एक से रहो, जैसी परिस्थितियां जीवन में आयें उनका डटकर मुकाबला करो, उनसे घबराओ नहीं, जो परिस्थितियों से घबरा जाता है, वो मानव जीवन में कभी प्रगति नहीं कर सकता, निराश न होइये सफलता अवश्य मिलेगी।हर जलते दीप के तले अंधेरा होता है।हर अंधेरी रात के पीछे सवेरा होता है।।लोग घबरा जाते हैं मुसीबतों को देखकर।हर मुसीबतों के बाद खुशी का तराना आता है।।सज्जनों, दु:ख से घबराना नहीं है अपने आप दु:ख शान्त हो जायेगा, केवल सामना किजिये, शास्त्र कहते हैं- रोज चिन्तन करो, मुस्कुराते हुए प्रभु के चेहरे का चिन्तन करो, जो ऐसा मानसिक पूजन नियमित करते है, धीरे-धीरे उसका मन एकाग्र हो जाता है, जिसमें हम नजर डालेंगे उसमें हमको परमात्मा दिखेगा, इसलिये मुस्कराते हुयें जीवन को भगवान् की अनुकम्पा के साथ जियें, इसी अध्यात्म संदेश के साथ आज कामदा ऐकादशी की पावन सुप्रभात् आप सभी को मंगलमय् हो।जय श्रीकृष्ण!ओऊम् नमो भगवते वासुदेवाय्
,प्रात: काल जल्दी उठ हाथ-पांव धोकर पलंग के पास बैठ जाइये, विचार करें कि मैं भगवान् का एक पार्षद हूँ, एक भक्त हूँ, ऐसा सोचकर परमात्मा का चिन्तन करें, परमात्मा के गुणों का नित्य चिन्तन करे, चिन्तन कैसे करें? परमात्मा के चरणों में ब्रज अंकुश ध्वजा का चिह्न है, ये परमात्मा के चरण हैं, चरणों के चिन्तन की बात शास्त्रों में क्यों कहीं? क्योंकि हमारा जो चित है ना सज्जनों, इसे चित क्यों कहते है? ।
#वनिता #कासनियां #पंजाब
❤️🙏🙏❤️
क्योंकि जन्म-जन्माँतरों की वासना की गठरी हमारे चित में चिपकी हुई है, कर्मों की गठरी चित में चिपकी हुई है, जब श्रीकृष्ण के चरणों का चिन्तन करेंगे तो कृष्ण पहले अपने चरणों को हमारे चित में स्थापित करेंगे, उनके चरणों की ध्वजा, अंकुश, ब्रज आदि के द्वारा हमारे पाप की गठरी कट-कटकर हट जायेगी और हमारा चित निर्मल हो जायेगा, जब परमात्मा को हम ह्रदय रूपी घर में बिठाना चाहते हैं और उसमें काम, क्रोध, मत्स्य, वासना जैसी गंदगी भरी होगी तो क्या परमात्मा कभी आयेंगे?
बिल्कुल नहीं आयेंगे, इसलिये पहले उनके चरणों का चिन्तन करें और चिन्तन के माध्यम से ह्रदय को शुद्ध करें, तब उस ह्रदय में मेरे गोविन्द का प्राकट्य हो सकता है, पहले चरणों का चिन्तन करें, घुटनों का चिन्तन करें, भगवान् के कटि प्रदेश का चिन्तन करें, प्रभु के उदर का चिन्तन करें, नाभि का चिन्तन करें, कण्ठ का चिन्तन करें और धीरे-धीरे मेरे गोविन्द के मुखार विन्द का चिन्तन करें।
हासं हरेरवनताखिललोकतीव्र शोकाश्रुसागर विशोषणमत्युदारम्।
सम्मोहनाय रचितं निजमाययास्य भ्रूमण्डलं मुनिकृते मकरध्वजस्य।।
हंसी से परिपूर्ण प्रभु के मुखार विन्द का चिन्तन करें, क्योंकि शोकरूपी सागर में डूबा हुआ जो मनुष्य है, उसे शोक सागर से निकालकर आनन्द के महासागर में पहुंचाने की ताकत केवल परमात्मा की हंसी में हैं, हंसते हुए भगवान् के चिन्तन की बात क्यों कहीं? दोस्तो! श्रीकृष्ण के चरित्र में जितने संकट आये, जितने भी परमात्मा के चरित्र है, उनमें श्रीकृष्ण के चरित्र में जितना संकट आया, उतना संकट किसी भगवान् के जीवन में कभी नहीं आया।
आप भगवान् श्रीकृष्ण के चरित्र पर एक नजर डालकर देखे- इनका जन्म कहां हुआ? जहाँ डाकुओं को बंद किया जाता है, जेलखाने में तो कन्हैया पैदा हुये जेलखाने में, जन्म लेते ही गोकुल भागना पड़ा, वहाँ केवल सात दिन के थे तो पूतना मारने आ गयी, छ: महीने के थे तब शंकटासुर राक्षस मारने आ गया, एक वर्ष के थे तो तृणावर्त मारने आया, यमुना में कूद कर कालियादमन किया, उसके बाद गिरिराज को उठाया, अघासुर, बकासुर, व्योमासुर, धेनुकासुर, केशी आदि कई राक्षसों को मारा।
ग्यारह वर्ष छप्पन दिन के कृष्ण ने सैंकड़ों राक्षसों से युद्ध किया, कंस का मर्दनकर उद्धार किया, मथुरा में भी शांति नहीं मिली, जरासंध ने मथुरा को घेर लिया तो द्वारिका नामक नगरी बसा कर द्वारिका चले गये, द्वारिका में शान्ति से बैठे थे कि पांडव बोले हम संकट में हैं हमारी रक्षा करो, कौरव-पांडवों में छिड़े युद्ध में कन्हैया ने पांडवों को विजय श्री प्रदान कराई, अब थोड़ा शान्ति से बैठे थे, चलो सुख से जीवन व्यतीत होगा तो घर में ही झगड़ा शुरू हो गया।
यदुवंशी एक-दूसरे पर वार करने लगे, घर में भी शान्ति नहीं मिली, कृष्ण की आँखों के सामने निन्यानवे लाख से भी ज्यादा संख्या वाले यदुवंशी ऐसे लड-लडकर, कट-कटकर मर गये, एक भी दिन श्री कृष्ण का सुख और शांति से व्यतीत नहीं हुआ, संकट पर आए संकटों का निवारण करने में ही सम्पूर्ण जीवन बीत गया, इतने संकट आने पर भी कभी आपने श्रीकृष्ण को अपने सिर पर हाथ धर कर कभी चिन्ता करते नहीं सुना।
भगवान् कभी चिन्ता में डूबे हो ऐसा शास्त्रों में कहीं पर नहीं लिखा, मुस्कुराते ही रहते थे हमेशा, इसका मतलब क्या है? श्री गोविन्द कहना चाहते है कि हमेशा मुस्कुराते रहे, सदैव प्रसन्न रहना ही मेरी सर्वोपरि भक्ति है, आपने सुना होगा उल्लू को दिन में दिखायी नहीं देता और जो कौआ होता है, उसे रात में दिखायी नहीं देता, उल्लू चाहता है कि हमेशा रात बनी रहे तो अच्छा, कौआ चाहता है कि दिन बना रहे तो अच्छा है, लेकिन उल्लू और कौए के चाहने से दिन-रात कभी बदलेगा? ये कभी हो सकता है क्या?
रात्रि के बाद दिन और दिन के बाद रात्रि तो आती ही रहेगी, ये क्रम है संसार का, दु:ख और सुख आते-जाते ही रहेंगे, अत: दोनो परिस्थतियों में एक से रहो, जैसी परिस्थितियां जीवन में आयें उनका डटकर मुकाबला करो, उनसे घबराओ नहीं, जो परिस्थितियों से घबरा जाता है, वो मानव जीवन में कभी प्रगति नहीं कर सकता, निराश न होइये सफलता अवश्य मिलेगी।
हर जलते दीप के तले अंधेरा होता है।
हर अंधेरी रात के पीछे सवेरा होता है।।
लोग घबरा जाते हैं मुसीबतों को देखकर।
हर मुसीबतों के बाद खुशी का तराना आता है।।
सज्जनों, दु:ख से घबराना नहीं है अपने आप दु:ख शान्त हो जायेगा, केवल सामना किजिये, शास्त्र कहते हैं- रोज चिन्तन करो, मुस्कुराते हुए प्रभु के चेहरे का चिन्तन करो, जो ऐसा मानसिक पूजन नियमित करते है, धीरे-धीरे उसका मन एकाग्र हो जाता है, जिसमें हम नजर डालेंगे उसमें हमको परमात्मा दिखेगा, इसलिये मुस्कराते हुयें जीवन को भगवान् की अनुकम्पा के साथ जियें, इसी अध्यात्म संदेश के साथ आज कामदा ऐकादशी की पावन सुप्रभात् आप सभी को मंगलमय् हो।
जय श्रीकृष्ण!
ओऊम् नमो भगवते वासुदेवाय्
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें