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हम नाम के लिये तरसते है लेकिन हनुमानजी अपने नाम को छुपाते है क्यों?#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान ❤️❤️❤️❤️❤️🙏🙏❤️❤️❤️❤️❤️❤️*प्रनवउँ #पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥मैं पवनकुमार श्री हनुमान्‌जी को प्रणाम करता हूँ, जो दुष्ट रूपी वन को भस्म करने के लिए अग्निरूप हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवन में धनुष-बाण धारण किए श्री रामजी निवास करते हैं॥ सज्जनों! हम नाम के लिये तरसते है लेकिन हनुमानजी अपने नाम को छुपाते है। हनुमानजी ने अपने नाम को छुपा लिया हम अपना प्रकट करने के लिये लालायित है, सज्जनों! कई लोग तो पत्थर पर खुदवा के जायेंगे, भले ही हम दुनिया से चले जायें लेकिन हमारा नाम रहना चाहियें, काम दिखाई दे न दे उसकी चिंता नहीं है, लेकिन नाम दिखाई देना चाहियें इसकी चिंता है, हनुमानजी का जगत में काम दिखाई देता है लेकिन हनुमानजी का कोई नाम नहीं पता लगा पाया।एक तो हनुमानजी ने अपना नाम छिपाया और दूसरा रूप, भाईयों! आपको तो मालूम है कि कुरूप कोई होता है तो बन्दर होता है, और इसके पीछे भी कारण होगा, हनुमानजी चाहते हैं कि लोग मुझे देख कर मुंह फेर ले, मैरे प्रभु का सब लोग दर्शन कर ले, मैरे प्रभु सुन्दर लगें, मै तो बन्दर ही ठीक हूँ।हम सब अपने नाम, रूप व यश के लिए रोते हैं, आप किसी भी #परिवार में जाइये, कोई न कोई यह शिकायत करते मिलेगा कि हम कितना भी कर दे, कितनी भी मेहनत करें, कितना भी काम कर दे, सबके लिए कितना भी कर दे, लेकिन हमें हमेशा अपयश ही मिलता है, हमको केवल बुराई ही बुराई मिलती है,सारा रोना यश का है।हनुमानजी हर घर में भगवान रामजी का यश चाहते हैं, जब लंका में हनुमानजी जानकीजी के पास बैठे थे और जानकी माँ स्वयं रो रही थीं तब हनुमानजी ने कहा माँ वैसे तो मैं आपको अभी ले जा सकता था, परन्तु मैं चाहता हूँ कि सारा जगत्, तीनों लोक मैरे प्रभु का यशगान करें, और बन्धुओं! जो यश का त्याग कर देता है, उनका यश हमेशा भगवान गाते हैं।अबहि मातु मैं जाऊँ लैवाई, #प्रभु आयसु नहिं राम दुहाई।कछुक दिवस जननी धरू धीरा, कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।निसिचर मारि तोहि ले जैहहिं, तिहुँ पुर नारदादि जस गैहहिं।।भगवान् श्री भरतजी से कहते हैं कि रघुवंश की इकहत्तर पीढियाँ भी हनुमान की सेवा में लग जायेंगी, तो भी हे भरत! रघुवंशी हनुमान के इस ऋण से उऋण नहीं होंगे, भगवान कहते हैं कि हनुमान अगर तूने अपना यश त्याग दिया तो मेरा आशीर्वाद है तेरा यश केवल मैं ही नहीं अपितु, "सहस बदन तुम्हरो जस गांवैं" हजारों मुखों से शेषनाग भी जिनका यश का गुणगान करते हैं।महावीर विनवउँ हनुमाना, राम जासु जस आपु बखाना।गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई, बार बार प्रभु निज मुख गाई।।श्री #हनुमानजी को देखो यश से कितनी दूर है, मनुष्य जरा सा भी काम करता है, उसको भी छपवाना चाहता है, हनुमानजी कितना बडा काम करके आयें तो भी छुपाते रहे, सज्जनों! आपने वो घटना सुनी होगी कि वानरों के बीच में भगवान् बैठे हैं तो भगवान् चाहते हैं कि हनुमानजी के गुण वानरों के सामने आयें, भगवान् बोले हनुमान 400 कोस का सागर कोई वानर पार नहीं कर पाया मैंने सुना तुम बडे आराम से पार करके चले गयें? हनुमानजी ने कहा महाराज बन्दर की क्या क्षमता थी, "शाखा से शाखा पर जाई" बन्दर तो इस टहनी से उस टहनी पर उछल कूद करता है यह तो प्रभु आपकी कृपा से हुआ, "प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, जलधि लागिं गये अचरज नाही" हनुमानजी बोले भगवान् से "तोय मुद्रिका उस पार किये" यह आपकी मुद्रिका थी जिस के कारण मैं सागर पार कर गया।भगवान् ने कहा अच्छा मैरी मुद्रिका से सागर पार किया परन्तु मुद्रिका तो आप जानकीजी को दे आये थे, लेकिन जब लोट कर आये तो सागर सिकुड गया था या छोटा हो गया था? हनुमानजी बोले सागर तो उतना ही रहा, भगवान ने पूछा जब तुम मेरी मुद्रिका से सागर पार गये और लोटते समय मुद्रिका तुम्हारे पास थी नही तो तुम इस पार कैसे आयें#Vnita🙏🙏❤️हनुमानजी ने बहुत सुन्दर उत्तर दिया कि "तोय मुदरि उस पार किये और चूडामणि इस पार" आपकी कृपा ने तो माँ के चरणों तक पहुंचा दिया और माँ के #आशीर्वाद ने आपके चरणों तक पहुंचा दिया, #भाई-बहनों! ऐसे है हमारे हनुमानजी महाराज, न नाम चाहिये न यश चाहियें।

हम नाम के लिये तरसते है लेकिन हनुमानजी अपने नाम को छुपाते है क्यों?

#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान

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*प्रनवउँ #पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥

मैं पवनकुमार श्री हनुमान्‌जी को प्रणाम करता हूँ, जो दुष्ट रूपी वन को भस्म करने के लिए अग्निरूप हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवन में धनुष-बाण धारण किए श्री रामजी निवास करते हैं॥  

सज्जनों! हम नाम के लिये तरसते है लेकिन हनुमानजी अपने नाम को छुपाते है। हनुमानजी ने अपने नाम को छुपा लिया हम अपना प्रकट करने के लिये लालायित है, सज्जनों! कई लोग तो पत्थर पर खुदवा के जायेंगे, भले ही हम दुनिया से चले जायें लेकिन हमारा नाम रहना चाहियें, काम दिखाई दे न दे उसकी चिंता नहीं है, लेकिन नाम दिखाई देना चाहियें इसकी चिंता है, हनुमानजी का जगत में काम दिखाई देता है लेकिन हनुमानजी का कोई नाम नहीं पता लगा पाया।

एक तो हनुमानजी ने अपना नाम छिपाया और दूसरा रूप, भाईयों! आपको तो मालूम है कि कुरूप कोई होता है तो बन्दर होता है, और इसके पीछे भी कारण होगा, हनुमानजी चाहते हैं कि लोग मुझे देख कर मुंह फेर ले, मैरे प्रभु का सब लोग दर्शन कर ले, मैरे प्रभु सुन्दर लगें, मै तो बन्दर ही ठीक हूँ।

हम सब अपने नाम, रूप व यश के लिए रोते हैं, आप किसी भी #परिवार में जाइये, कोई न कोई यह शिकायत करते मिलेगा कि हम कितना भी कर दे, कितनी भी मेहनत करें, कितना भी काम कर दे, सबके लिए कितना भी कर दे, लेकिन हमें हमेशा अपयश ही मिलता है, हमको केवल बुराई ही बुराई मिलती है,सारा रोना यश का है।

हनुमानजी हर घर में भगवान रामजी का यश चाहते हैं, जब लंका में हनुमानजी जानकीजी के पास बैठे थे और जानकी माँ स्वयं रो रही थीं तब हनुमानजी ने कहा माँ वैसे तो मैं आपको अभी ले जा सकता था, परन्तु मैं चाहता हूँ कि सारा जगत्, तीनों लोक मैरे प्रभु का यशगान करें, और बन्धुओं! जो यश का त्याग कर देता है, उनका यश हमेशा भगवान गाते हैं।

अबहि मातु मैं जाऊँ लैवाई, #प्रभु आयसु नहिं राम दुहाई।
कछुक दिवस जननी धरू धीरा, कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।
निसिचर मारि तोहि ले जैहहिं, तिहुँ पुर नारदादि जस गैहहिं।।

भगवान् श्री भरतजी से कहते हैं कि रघुवंश की इकहत्तर पीढियाँ भी हनुमान की सेवा में लग जायेंगी, तो भी हे भरत! रघुवंशी हनुमान के इस ऋण से उऋण नहीं होंगे, भगवान कहते हैं कि हनुमान अगर तूने अपना यश त्याग दिया तो मेरा आशीर्वाद है तेरा यश केवल मैं ही नहीं अपितु, "सहस बदन तुम्हरो जस गांवैं" हजारों मुखों से शेषनाग भी जिनका यश का गुणगान करते हैं।

महावीर विनवउँ हनुमाना, राम जासु जस आपु बखाना।
गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई, बार बार प्रभु निज मुख गाई।।

श्री #हनुमानजी को देखो यश से कितनी दूर है, मनुष्य जरा सा भी काम करता है, उसको भी छपवाना चाहता है, हनुमानजी कितना बडा काम करके आयें तो भी छुपाते रहे, सज्जनों! आपने वो घटना सुनी होगी कि वानरों के बीच में भगवान् बैठे हैं तो भगवान् चाहते हैं कि हनुमानजी के गुण वानरों के सामने आयें, भगवान् बोले हनुमान 400 कोस का सागर कोई वानर पार नहीं कर पाया मैंने सुना तुम बडे आराम से पार करके चले गयें? 

हनुमानजी ने कहा महाराज बन्दर की क्या क्षमता थी, "शाखा से शाखा पर जाई" बन्दर तो इस टहनी से उस टहनी पर उछल कूद करता है यह तो प्रभु आपकी कृपा से हुआ, "प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, जलधि लागिं गये अचरज नाही" हनुमानजी बोले भगवान् से "तोय मुद्रिका उस पार किये" यह आपकी मुद्रिका थी जिस के कारण मैं सागर पार कर गया।

भगवान् ने कहा अच्छा मैरी मुद्रिका से सागर पार किया परन्तु मुद्रिका तो आप जानकीजी को दे आये थे, लेकिन जब लोट कर आये तो सागर सिकुड गया था या छोटा हो गया था? हनुमानजी बोले सागर तो उतना ही रहा, भगवान ने पूछा जब तुम मेरी मुद्रिका से सागर पार गये और लोटते समय मुद्रिका तुम्हारे पास थी नही तो तुम इस पार कैसे आयें

#Vnita🙏🙏❤️

हनुमानजी ने बहुत सुन्दर उत्तर दिया कि "तोय मुदरि उस पार किये और चूडामणि इस पार" आपकी कृपा ने तो माँ के चरणों तक पहुंचा दिया और माँ के #आशीर्वाद ने आपके चरणों तक पहुंचा दिया, #भाई-बहनों! ऐसे है हमारे हनुमानजी महाराज, न नाम चाहिये न यश चाहियें।

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